अमेरिका में जस्टिस डिपार्टमेंट और 11 राज्यों ने सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाले सर्च इंजिन Google पर मुकदमा दर्ज किया है। उस पर आरोप लगा है कि प्रतिस्पर्धा खत्म करने और अपना एकाधिकार जमाने के लिए उसने अवैध तरीके से ऐपल और स्मार्टफोन बनाने वाली कंपनियों से एक्सक्लूसिव डील्स की।
दो दशक में यह किसी टेक्नोलॉजी फर्म के खिलाफ सबसे बड़ा मुकदमा है। इससे पहले 1998 में इसी तरह का मुकदमा माइक्रोसॉफ्ट के खिलाफ भी दर्ज हुआ था। वैसे, Google पर यह आरोप पहले भी लगते रहे हैं। अब खबरें यह भी आ रही हैं कि ऑस्ट्रेलिया और जापान भी यूरोप और अमेरिका के साथ बड़ी टेक कंपनियों के एकाधिकार को चुनौती देने की तैयारी में है।
ऐसे में यह जानना जरूरी है कि इन मुकदमों में Google पर क्या आरोप लगे हैं? इसका क्या असर पड़ सकता है? आइए इन प्रश्नों के जवाब तलाशते हैं...
सबसे पहले, मुकदमा क्या है और किसने किया है?
- अमेरिका में जस्टिस डिपार्टमेंट और 11 अलग-अलग राज्यों ने Google के खिलाफ यह एंटीट्रस्ट मुकदमा किया है। 54 पेज की शिकायत में आरोप लगाया गया है कि Google ने सर्च इंजिन बिजनेस में 90% से ज्यादा मार्केट हिस्सेदारी हासिल करने के लिए एक्सक्लूसिव डील्स की। इससे इन डिवाइस पर यूजर्स के लिए Google डिफॉल्ट सर्च इंजिन बन गया।
- Google ने मोबाइल बनाने वाली कंपनियों, कैरियर्स और ब्राउजर्स को अपनी विज्ञापनों से होने वाली कमाई से अरबों डॉलर का पेमेंट किया ताकि Google उनके डिवाइस पर प्री-सेट सर्च इंजिन बन सके। इससे Google ने लाखों डिवाइस पर टॉप पोजिशन हासिल की और अन्य सर्च इंजिन के लिए खुद को स्थापित करने से रोक दिया।
- आरोप यह भी है कि ऐपल और Google ने एक-दूसरे का सहारा लिया और अपने प्रतिस्पर्धियों को मुकाबले से बाहर कर दिया। अमेरिका में Google के सर्च ट्रैफिक में करीब आधा ऐपल के आईफोन्स से आया। वहीं, ऐपल के प्रॉफिट का पांचवां हिस्सा Google से आया।
- Google ने इनोवेशन को रोक दिया। यूजर्स के लिए चॉइस खत्म की और प्राइवेसी डेटा जैसी सर्विस क्वालिटी को प्रभावित किया। Google ने अपनी पोजिशन का लाभ उठाया और अन्य कंपनियों या स्टार्टअप्स को उभरने या इनोवेशन करने का मौका ही नहीं छोड़ा। जस्टिस डिपार्टमेंट ने करीब एक साल की जांच के बाद यह मुकदमा दर्ज किया है।
अमेरिकी सरकार के आरोपों पर Google का क्या जवाब है?
##- Google के चीफ लीगल ऑफिसर केंट वॉकर का कहना है कि यह मुकदमा बेबुनियाद है। लोग Google का इस्तेमाल करते हैं क्योंकि उन्होंने ऐसा करने का फैसला किया है। Google ने किसी के साथ अपनी सर्विसेस का इस्तेमाल करने के लिए जबरदस्ती नहीं की है। यदि उन्हें चाहिए तो ऑप्शन मौजूद है।
- उनका कहना है कि एंटी ट्रस्ट कानून के बहाने ऐसी कंपनियों के पक्ष लिया जा रहा है, जो मार्केट में कॉम्पीटिशन नहीं कर पा रही है। Google ऐपल और अन्य स्मार्टफोन कंपनियों को पेमेंट करता है ताकि उसे ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचने के लिए शेल्फ स्पेस मिल सके। इसमें कुछ भी गलत नहीं है।
- वॉकर ने यह भी कहा कि अमेरिकी एंटी ट्रस्ट लॉ का डिजाइन ऐसा नहीं है कि किसी कमजोर प्रतिस्पर्धी को मजबूती प्रदान करें। यहां सबके लिए बराबर मौके हैं। यह मुकदमा कोर्ट में ज्यादा टिकने वाला नहीं है। Google जो भी सर्विस यूजर्स को देता है, वह मुफ्त है। इससे किसी और को नुकसान होने की आशंका जताना गलत है।
इस मुकदमे के पीछे की राजनीति क्या है?
- इस मुकदमे को दर्ज करने की टाइमिंग से लेकर इसमें शामिल राज्यों तक कई प्रश्न खड़े हैं। चुनावों से ठीक दो हफ्ते पहले यह मुकदमा दाखिल किया गया है। आम तौर पर किसी भी कदम का चुनावों पर असर पड़ने का डर होता है, इस वजह से कोई बड़ा कदम सरकार नहीं उठाती।
- महत्वपूर्ण बात यह है कि जिन 11 राज्यों ने जस्टिस डिपार्टमेंट का साथ दिया है, वह सभी रिपब्लिकन अटॉर्नी जनरल हैं। हकीकत तो यह है कि अमेरिका के सभी 50 राज्यों ने Google के खिलाफ एक साल पहले जांच शुरू की थी।
केस का नतीजा क्या आ सकता है?
- इस तरह के केस में सुनवाई लंबी चलती है और फैसला आने में दो-तीन साल लग जाते हैं। माइक्रोसॉफ्ट के खिलाफ भी 1998 में इसी तरह का मुकदमा दर्ज हुआ था, जो सेटलमेंट पर खत्म हुआ था।
- Google पर इससे पहले यूरोप में भी इसी तरह के आरोप लगे थे। यदि कंपनी की हार होती है तो उसे कंपनी के स्ट्रक्चर में कुछ बदलाव करने होंगे। वहीं, यदि वह जीत गई तो यह बड़ी टेक कंपनियों को मजबूती देगा। इससे उन पर काबू पाने की सरकारों की कोशिशों को झटका लगेगा।
- यह तो तय है कि मुकदमे का नतीजा आने में समय लगेगा। तीन नवंबर को अमेरिका में चुनाव है और नई सरकार को ही यह केस लड़ना होगा। डेमोक्रेट्स लंबे समय से दलील दे रहे हैं कि नए डिजिटल युग में एंटी ट्रस्ट कानून के प्रावधानों को बदलने की जरूरत है।
क्या भारत में भी Google के खिलाफ कार्रवाई हो सकती है?
- भारत में कॉम्पीटिशन कमीशन ऑफ इंडिया (सीसीआई) का काम बाजार में किसी कंपनी के एकाधिकार को खत्म करना है। वह हेल्दी कम्पीटिशन को प्रमोट करता है। अमेरिका में जो मुकदमा दाखिल हुआ है, उसी तरह की शिकायत की जांच सीसीआई पहले ही कर रहा है।
- पिछले महीने Google बनाम पेटीएम के मुद्दे पर भी ऐसी ही स्थिति बनी थी, जब Google ने अपनी पोजिशन का फायदा उठाते हुए पेटीएम के ऐप को प्ले स्टोर से हटा दिया था। तब भी पेटीएम ने यही आरोप लगाए थे कि Google अपने और दूसरे ऐप्स के बीच भेदभाव करता है।
- न्यूज एजेंसी रॉयटर्स ने कुछ दिन पहले खबर दी थी कि कॉम्पीटिशन कमीशन ऑफ इंडिया ने स्मार्ट टीवी मार्केट में Google की दादागिरी की जांच करने वाली है। मामला स्मार्ट टीवी में इंस्टॉल होने वाले एंड्रॉयड ओएस के सप्लाई से जुड़ा है, जो भारत में बिक रहे ज्यादातर स्मार्ट टीवी में पहले से इंस्टॉल मिलता है।
भारत के कानून एक्सपर्ट क्या कह रहे हैं?
- साइबर कानून विशेषज्ञ और सुप्रीम कोर्ट के वकील विराग गुप्ता कहते हैं कि यदि अमेरिका में Google के कॉर्पोरेट वर्चस्व को खत्म करने की कार्रवाई हुई तो इसका असर भारत में भी पड़ेगा। अमेरिका के मुकाबले भारत में Google जैसी कंपनियों ने अपना अराजक वर्चस्व स्थापित किया है।
- सीनियर एडवोकेट के मुताबिक, भारत में नए कानून बनाने और पुराने कानूनों में बदलाव जरूरी है। भारत ने हाल में चीन और पाकिस्तान से एफडीआई को लेकर कई प्रतिबंधात्मक नियम बनाए हैं। इसी तर्ज पर टेक कंपनियों के लिए भी कंपनी कानून, आईटी कानून और आयकर कानून के नियमों को बदलना जरूरी है।
- गुप्ता कहते हैं कि इन कंपनियों की ओर से बड़े पैमाने पर डेटा की खरीद-फरोख्त होती है। इस पर अंकुश लगाना जरूरी है, ताकि सरकारी राजस्व बढ़ाया जा सके। भारत में इन कंपनियों के एकाधिकार को चुनौती देने के लिए कम्पीटिशन कमिशन की व्यवस्था को दुरूस्त करने की जरूरत है।
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