मुंबई: बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा है कि गरीब एवं जरूरतमंद वर्गों के कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों को अस्पतालों में भर्ती करते समय रियायती दर पर या मुफ्त उपचार उपलब्ध कराने के लिए उनसे दस्तावेजी साक्ष्य पेश करने की उम्मीद नहीं की जा सकती। बांद्रा की झुग्गी बस्ती पुनर्वास इमारत में रहने वाले 7 लोगों की याचिका पर सुनवाई के दौरान अदालत ने शुक्रवार को यह टिप्पणी की। इन 7 लोगों से 11 अप्रैल से 28 अप्रैल के बीच कोरोना वायरस संक्रमण के उपचार के लिए के जे सोमैया अस्पताल ने 12.5 लाख रुपये वसूले।
अस्पताल को 10 लाख रुपये जमा कराने का आदेश
जस्टिस रमेश धानुका और जस्टिस माधव जामदार की पीठ ने अस्पताल को अदालत में 10 लाख रुपये जमा कराने का आदेश दिया। याचिकाकर्ताओं के वकील विवेक शुक्ला ने अदालत को बताया कि अस्पताल ने धमकी दी कि यदि याचिकाकर्ता अपने बिल का भुगतान नहीं करेंगे तो उन्हें अस्पताल से छुट्टी नहीं दी जाएगी। इसके बाद याचिकाकर्ताओं ने धन उधार लेकर 12.5 लाख रुपये में से 10 लाख रुपये का भुगतान जैसे-तैसे किया। याचिका के अनुसार याचिकाकर्ताओं से PPE किटों के लिए अतिरिक्त राशि ली गई और उनसे उन सेवाओं के लिए भी पैसे लिए गए जिनका इस्तेमाल नहीं किया गया।
अदालत ने धर्मादाय आयुक्त से पूछे थे ये सवाल
अदालत ने 13 जून को राज्य धर्मादाय आयुक्त को इस बात की जांच करने के आदेश दिए थे कि क्या अस्पताल ने 20 प्रतिशत बिस्तर गरीब एवं जरूरतमंद मरीजों के लिए आरक्षित रखे हैं और क्या उन्हें रियायती दर पर या मुफ्त में उपचार मुहैया कराया जा रहा है? संयुक्त धर्मादाय आयुक्त ने अदालत को पिछले सप्ताह बताया था कि हालांकि ऐसे बिस्तर आरक्षित रखे गए हैं, लेकिन लॉकडाउन के लागू होने के समय से केवल 3 गरीब या जरूरतमंद मरीजों का उपचार किया गया है। शुक्ला ने दलील दी कि पहले से परेशान कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों से आय प्रमाण पत्र और इस प्रकार के अन्य दस्तावेज सबूत के रूप में पेश करने की अपेक्षा नहीं की जा सकती।
अस्पताल ने अपने बचाव में दी यह दलील
हालांकि अस्पताल की ओर से पेश हुए वकील जनक द्वारकादास ने कहा कि याचिकाकर्ता आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के नहीं हैं और उन्होंने यह साबित करने के लिए कोई दस्तावेज पेश नहीं किए। पीठ ने कहा कि कोविड-19 जैसी बीमारी से जूझ रहे मरीज से अस्पताल में भर्ती होने से पहले तहसीलदार या समाज कल्याण अधिकारी की ओर से जारी प्रमाण पत्र पेश करने की अपेक्षा नहीं की जा सकती। इसने अस्पताल को 2 सप्ताह के अंदर अदालत में 10 लाख रुपये जमा करने का आदेश दिया।
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