नयी दिल्ली। सरकार ने कृषि सुधार से जुड़े दो अध्यादेश शुक्रवार को अधिसूचित कर दिए। यह अध्यादेश किसानों को मुक्त व्यापार में मदद करने और उनकी उपज का बेहतर दाम दिलाने से जुड़े हैं। भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने दोनों अध्यादेशों को अपनी मंजूरी दे दी है। एक आधिकारिक बयान के मुताबिक, 'कृषि और संबद्ध गतिविधियों में लगे किसानों और ग्रामीण भारत को आगे बढ़ाने के लक्ष्य के लिए भारत के राष्ट्रपति ने इन अध्यादेशों को अपनी मंजूरी दे दी है।' सरकार ने 'कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्द्धन एवं सुविधा) अध्यादेश 2020' को अधिसूचित किया। इसका लक्ष्य किसानों को राज्य के भीतर और अन्य राज्यों में अपनी पसंद के बाजार में कृषि उपज को बेचने की छूट देना है।
वहीं, एक अन्य अध्यादेश 'मूल्य आश्वासन और कृषि सेवाओं पर किसान (सशक्तिकरण और सुरक्षा) समझौता अध्यादेश-2020' किसानों को प्रसंस्करण इकाइयों, थोक व्यापारियों, बड़ी खुदरा कंपनियों और निर्यातकों के साथ पहले से तय कीमतों पर समझौते की छूट देगा। कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने शुक्रवार को सभी मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखकर इन सुधारों को सफल तरीके से लागू करने में सहयोग करने के लिए कहा। उन्होंने नये सुधारों के परिवेश में कृषि क्षेत्र के विकास और वृद्धि में उनके लगातार समर्थन की आवश्यकता पर जोर दिया।
केंद्र सरकार ने जोर देकर कहा कि किसानों को बेहतर दाम वाले अपनी पसंद के बाजार में उपज बेचने का विकल्प देने से संभावित खरीदारों की संख्या भी बढ़ेगी। 'कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्द्धन एवं सुविधा) अध्यादेश 2020' के अनुसार कोई भी किसान या व्यापारी या इलेक्ट्रॉनिक व्यापार एवं लेनदेन मंच के पास कृषक उपज को व्यापार क्षेत्र के दायरे में राज्य के भीतर या दूसरे राज्यों में बेचने का विकल्प मौजूद होगा। कृषि उपज संगठनों (एफपीओ) या कृषि सहकारी संस्थाओं को छोड़कर अन्य कोई भी व्यापारी किसी भी सूचीबद्ध कृषि उत्पाद में पैन संख्या या अन्य तय दस्तावेज के बिना व्यापार नहीं कर सकेगा। किसान के साथ व्यापार करने वाले व्यापारी को किसान को उसी दिन या अधिकतम तीन कार्यदिवसों के भीतर भुगतान करना होगा। इस प्रावधान का उल्लंघन करने वाले व्यापारी पर न्यूनतम 25,000 रुपये और अधिकतम पांच लाख रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा। यदि उल्लंघन जारी रहता है तो प्रत्येक दिन के हिसाब से 5,000 रुपये के जुर्माने का प्रावधान होगा।
अध्यादेश में एक इलेक्ट्रॉनिक व्यापार मंच बनाने का प्रस्ताव है। कोई भी पैन कार्डधारक या सरकार द्वारा तय दस्तावेज रखने वाला या एफपीओ और सहकारी संगठन इस तरह का मंच बना सकते हैं। यह मंच एक व्यापार क्षेत्र में तय किसान उपजों के राज्य के भीतर या दूसरे राज्यों में व्यापार की सुविधा प्रदान कर सकते हैं। इसके लिए उचित व्यापार प्रक्रियाओं से जुड़े नियम होंगे। कोई भी व्यक्ति या संगठन यदि ई-व्यापार मंच के प्रावधानों का उल्लंघन करता है जो उस पर न्यूनतम 50,000 रुपए और अधिकतम 10 लाख रुपए का जुर्माना लगाया जाएगा। यदि उल्लंघन जारी रहता है तो फिर 10,000 रुपए प्रति दिन के हिसाब से जुर्माना लगेगा। अध्यादेश में विवाद निपटान की प्रकिया का भी प्रावधान किया गया है। इस तरह के विवादों का निपटान उप-मंडलीय मजिस्ट्रेट और जिला कलेक्टर के सामने किया जाएगा। इन्हें दीवानी अदालतों से बाहर रखा गया है।
अध्यादेश के हिसाब से केंद्र या राज्य सरकार के कर्मचारी उचित व्यापार प्रक्रियाओं का उल्लंघन करने के चलते किसी ई-व्यापार मंच को निलंबित भी कर सकते हैं। निगमित मंडियों के बाहर होने वाले किसी भी तरह के सौदों को हर तरह के शुल्कों से छूट दी गयी है। 'मूल्य आश्वासन और कृषि सेवाओं पर किसान (सशक्तिकरण और सुरक्षा) समझौता अध्यादेश-2020' में किसानों को पहले से तय मूल्य पर कृषि उपजों की आपूर्ति के लिए एक लिखित समझौता करने की अनुमति दी गयी है। लेकिन किसी भी किसान द्वारा किया जाने वाला कोई भी कृषि समझौता बटाईदारों के हक का अनादर करने वाला नहीं होगा। यह समझौता कम से कम एक फसली मौसम या एक उत्पादन चक्र का होना चाहिए। यह समझौता अधिकतम पांच साल के लिए हो सकता है। केंद्र सरकार इसके लिए आदर्श कृषि समझौते के दिशा-निर्देश जारी करेगी, ताकि किसानों को लिखित समझौते करने में मदद मिल सके। समझौते में किसान को उसकी उपज के लिए दी जाने वाली राशि का स्पष्ट उल्लेख होना चाहिए। साथ ही तय कीमत से ऊपर किसी अन्य राशि का भी उल्लेख किया जाना चाहिए।
अध्यादेश में कहा गया है कि समझौते के तहत कृषि उपज की आपूर्ति की जिम्मेदारी स्पॉन्सर की होगी जो उसे एक तय समय के भीतर किसान के खेत से करनी होगी। स्पॉन्सर समझौते के हिसाब से कृषि उपज की गुणवत्ता की जांच करेगा। इस समझौते को उपज की खरीद और बिक्री के नियमन के लिए बनाए गए राज्यों के किसी भी कानून से छूट रहेगी। किसी भी किसान को समझौते के हस्तांतरण, बिक्री, पट्टे पर देने या जमीन को गिरवी रखने और जमीन पर निर्माण के लिए बदलने की अनुमति नहीं होगी। किसान समझौतों को केंद्र या राज्य सरकारों की किसी योजना के तहत बीमा और ऋण सुविधाओं से जोड़ा जा सकेगा। समझौते को आपसी सहमति से खत्म या बदला जा सकेगा। राज्य सरकारें इसके लिए कोई पंजीकरण प्राधिकरण या ई-रजिस्ट्री व्यवस्था उपलब्ध करा सकती हैं। अध्यादेश में विवाद निपटान के लिए सुलह बोर्ड के गठन का प्रावधान है। लेकिन किसान या उसकी भूमि के नाम पर कोई राशि नहीं वसूली जा सकेगी। इन समझौतों को भी दीवानी अदालतों के दायरे से बाहर रखा गया है।
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